
हर साल अप्रैल के महीने में जब पूर्णिमा की रात आती है, तो एक विशेष खगोलीय घटना का ज़िक्र होता है – “पिंक मून”। नाम सुनते ही मन में उत्सुकता जागती है कि क्या सच में चांद गुलाबी हो जाता है? क्या यह कोई चमत्कार है या विज्ञान का करिश्मा? इस लेख में हम जानेंगे इस खूबसूरत और रोमांचक खगोलीय घटना के पीछे का रहस्य, उसका समय, वैज्ञानिक पहलू और भारत में इसे देखने का सही तरीका।
???? 23 अप्रैल 2025 (मंगलवार)
???? पूर्णिमा का चरम समय: लगभग 9:30 PM (भारतीय समयानुसार)
???? स्थान: पूरे भारत में स्पष्ट मौसम होने पर इसे देखा जा सकता है।
पिंक मून को देखने के लिए किसी खास उपकरण की जरूरत नहीं होती। यह नज़ारा आंखों से ही साफ देखा जा सकता है यदि:
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आसमान साफ हो
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प्रदूषण और शहर की रोशनी कम हो
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आप छत या खुले मैदान में हों
अगर आपके पास टेलीस्कोप या बायनोक्युलर है, तो चांद की सतह और बनावट को और भी स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।
यह एक आम भ्रम है कि पिंक मून पर चांद गुलाबी दिखाई देता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि:
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चांद का रंग सामान्य ही रहता है
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हालांकि, वातावरण, प्रदूषण या सूर्यास्त/सूर्योदय के समय, यह कभी-कभी हल्का सुनहरा, नारंगी या गुलाबी आभा लिए हो सकता है
वैज्ञानिक नजरिए से:
पिंक मून, पूर्णिमा की एक सामान्य खगोलीय घटना है जो चंद्रमा के पृथ्वी के चारों ओर घूमने के चक्र का हिस्सा है।ज्योतिषीय मान्यता में:
भारत में पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। पिंक मून को कई लोग शुभ मानते हैं, खासकर नए कार्य शुरू करने या ध्यान साधना के लिए।“पिंक मून” एक अद्भुत खगोलीय घटना है जो प्रकृति और आकाश से जुड़ने का एक सुंदर अवसर देती है। भले ही चांद वास्तव में गुलाबी नहीं होता, लेकिन इसका नाम और समय इसे खास बना देता है। यह उन पलों में से एक है जब आप एक पल को रोक कर आसमान की ओर देख सकते हैं और प्रकृति के जादू को महसूस कर सकते हैं।