13 दिसंबर। केंद्रीय गृह मंत्री और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को श्री विजयपुरम में स्वतंत्र वीर विनायक दामोदर सावरकर की कविता सागर प्राण तलमालाला की 115वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम को संबोधित किया। इस कार्यक्रम में आरएसएस सरसंघचालक मोहन भगवत और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के उपराज्यपाल एडमिरल (सेवानिवृत्त) डीके जोशी भी उपस्थित थे।
कार्यक्रम के दौरान सावरकर की आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया गया। शाह ने कहा कि भगवत द्वारा अनावरण किए जाने के कारण यह क्षण विशेष महत्व रखता है, और उन्होंने आरएसएस को सावरकर की विचारधारा को आगे बढ़ाने वाला संगठन बताया। उन्होंने कहा कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारतीयों के लिए एक तीर्थस्थल बन गया है, क्योंकि सावरकर ने अपने जीवन के कुछ सबसे कठिन वर्ष वहीं बिताए थे, और उन्होंने सुभाष चंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज के साथ द्वीपों के ऐतिहासिक संबंध को याद किया। उन्होंने कहा कि बोस ने द्वीपों का नाम ‘शहीद’ और ‘स्वराज’ रखने का प्रस्ताव दिया था, जिसे नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर पूरा किया गया।
शाह ने कहा कि यह नई प्रतिमा सावरकर के बलिदान और देश के प्रति समर्पण की याद दिलाएगी और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगी। उन्होंने सागर प्राण तलमलाला को देशभक्ति की एक उत्कृष्ट अभिव्यक्ति बताया और सावरकर के इस विश्वास को याद किया कि सच्चा साहस भय का अभाव नहीं, बल्कि उस पर विजय पाने की क्षमता है।
गृह मंत्री ने सावरकर पर एक कॉफी टेबल बुक का विमोचन भी किया और कहा कि वर्षों से किए गए अनेक प्रयासों से उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत करने में मदद मिली है। उन्होंने कहा कि देशभक्ति, सामाजिक सुधार, विद्वत्ता और योद्धा भावना से परिपूर्ण सावरकर का व्यक्तित्व इतना विशाल था कि किसी एक कृति में उसका पूर्ण वर्णन संभव नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि सावरकर के दृढ़ विश्वास सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एक ऐसे स्वरूप में निहित थे जो आज भी भारत की दिशा का मार्गदर्शन करता है।
शाह ने सामाजिक भेदभाव को चुनौती देने में सावरकर की भूमिका पर प्रकाश डाला और कहा कि साहित्य में उनका योगदान—जिसमें भारतीय भाषाओं में 600 से अधिक शब्दों का समावेश शामिल है—उनके व्यापक प्रभाव को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि 1857 के विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में सावरकर की व्याख्या ने उस समय राष्ट्रीय चेतना को नया रूप देने में मदद की जब अंग्रेज औपनिवेशिक मानसिकता थोपने का प्रयास कर रहे थे।
मंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने पिछले 12 वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। उन्होंने स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर घोषित पंच प्राण का जिक्र करते हुए कहा कि औपनिवेशिक मानसिकता के अवशेषों को मिटाना एक प्रमुख राष्ट्रीय संकल्प बना हुआ है। उन्होंने कहा कि 2047 तक भारत का लक्ष्य हर क्षेत्र में वैश्विक नेता के रूप में उभरना है और 140 करोड़ नागरिकों के सामूहिक प्रयास से एक सुरक्षित, समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से आत्मविश्वासी राष्ट्र का निर्माण होगा।
शाह ने कहा कि सावरकर के भारत के दृष्टिकोण को तभी साकार किया जा सकेगा जब युवा राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने और एक सशक्त एवं समृद्ध देश के निर्माण में योगदान देने के संकल्प के साथ काम करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि सावरकर से जुड़ी उपाधि “वीर” किसी सरकार द्वारा नहीं बल्कि भारत की जनता द्वारा प्रदान की गई है।
